गीत (रोम-रोम हर्षित)
गीत(रोम-रोम हर्षित)
रोम-रोम हर्षित तन-मन का,
प्रियवर के मिल जाने से।
घर-आँगन-चौबारा चहके-
दिलवर को फिर पाने से।।
हर्ष मनाएँ कलियाँ सारी,
पुष्प-वाटिका थिरक उठी।
भ्रमर सभी हैं नर्तन करते,
गली-गली सब महक उठी।
प्रकृति झूमती दिखती जैसे-
फसलों के लहराने से।।
दिलवर को फिर पाने से।।
हुआ आगमन जब से उनका,
चमक उठा कोना-कोना।
माटी का यह तन भी मेरा,
लगता है सोना-सोना।
उछलूँ- कूदूँ, नाचूँ- गाऊँ-
बनती बात बनाने से।।
दिलवर को फिर पाने से।।
बड़ा कठिन होता जीवन में,
खोया प्यार मिले कैसे?
मंज़िल रहती पास बहुत ही,
राह सटीक मिले कैसे?
सरित-सिंधु का किंतु मिलन हो-
पत्थर से टकराने से।।
दिलवर को फिर पाने से।।
भटका राही अंत समय में,
जब अपने घर आता है।
अपनों से वह मिलकर यारों,
स्वर्ग सदृश सुख पाता है।
अब घर मेरा स्वर्ग बनेगा-
प्रियवर तेरे आने से।।
दिलवर को फिर पाने से।।
रोम-रोम हर्षित तन-मन का,
प्रियवर के मिल जाने से।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Apr-2023 07:46 AM
बहुत ही सुंदर सृजन
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Varsha_Upadhyay
28-Apr-2023 10:49 PM
बहुत सुंदर
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madhura
28-Apr-2023 07:36 PM
nice
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